मित्रों ,
'जोधपुर थडी' में आपका स्वागत है .
यहाँ आपसे सच- सच बात करुँगी .बिना किसी घुमाव फिराव के . बिना किसी लाग लपेट के . बिना किसी कल्पना लोक में उतरे .कुछ एड्स पीड़ित औरतों से मिलने , बात करने का अवसर मिला . उनकी बीमारी के बारे में बातचीत की . शारीरिक , मानसिक पीडा पर बात की .पारिवारिक ,सामाजिक उपेक्षा पर वे रोते रोते बोलीं .वो क्या बोलीं उनके आंसू अधिक बोले . उनके दर्द को पढने की कोशिश की .मैंने उनके नाम और जगहों के नाम बदल दिए हैं . इस से कहानी पर, आप पर, मुझ पर फर्क भी क्या पड़ता है ? ये दर्द की पोटलियाँ हैं . इन्हें धीरे धीरे सँभालते हुए खोलना .ये बिखर ना जाएँ .
वह टूटकर जुड़ती रही
'इनके पापा नहीं रहे . कौन कन्धों पर बैठाकर दुनिया का मेला दिखायेगा ? मुझे ही चलना है इनकी अंगुली थाम कर . जब तक बदन में ताकत है . तब तक रास्ता दिखाती रहूंगी '. शारदा के इन शब्दों में ममता , विवशता ,दृढ निश्चय और दर्द करवटें ले रहा था . शारदा एचआईवी पोजिटिव है .उसके पति की मौत इसी बीमारी से हुई .
पति गुजरे तो लोगों नें सलाह दी कि तुम भी टेस्टिंग करवा लो . डरते डरते कराई .होनी को कौन टाल सकता है . वह भी उसी राह में खड़ी मिली जिस राह से उसका पति गुजरा था .शारदा कई दिन सुन्न रही .
शारदा का पति काम के सिलसिले में टूर पर ज्यादा रहता था .यह सिलसिला १५ वर्षों तक चलता रहा . एक दिन पता चला कि उसे टायफायड हो गया है . उस दौरान पॉँच इंजेक्शन दिए . बस वे ही बने उसकी मौत का कारण . पति पर थोडा सा संशय भी शारदा को मान्य नहीं . 'नहीं नहीं ,वे अच्छे चाल चलन वाले थे . एक बार टूर से लौटे . बोले सिर दर्द हो रहा है . फिर तो कभी ना थमनेवाला सिलसिला चल पड़ा बीमारियों का . '
शरीर से कमजोर होते चले गए . छाती में पानी भर गया . टी बी हो गई . एक बीमारी ठीक हो तो दूसरी चढाई कर दे . तन का किला ढहता चला गया .एड्स के खूनी पंजों ने उसकी जान ले ली . पति का जाना शारदा के लिए उसकी वह जमीन चले जाने जैसा हुआ जिस पर वह मजबूती से खड़ी थी .
पैसे की कमी ., ससुराल वालों की उपेक्षा , एक बच्चे और खुद का एचआईवी पोजिटिव होना, ये सब कारण उसे तोड़ने के लिए काफी थे . पर वह टूट टूट कर भी जुड़ती रही . उसे जीवित और साबुत रहना था . रहना है . अपने बच्चों के लिए .
मैंने शारदा से एक टेढा प्रश्न कर लिया .-कभी दूसरी शादी का ख्याल आया ?
जवाब था -एक तो उम्र का अधबीच . दूसरा ,मेरे लिए यह सब करेगा कौन ?तीसरा, जिनको पता नहीं उन्हें भी पता चल जायेगा .रही सही इज्जत चली जायेगी . चौथा, किसी की जिन्दगी क्यों बर्बाद करूँ .
इधर घरवाले कहते हैं - अपना कमाओ , खाओ . कब तक भरते रहेंगे तीन तीन पेट ? गलत भी क्या है ? शारदा कहती है --बात तो उनकी ठीक ही है . पर क्या उनके साथ ऐसा नहीं हो सकता ? क्या बुरे समय में अपनों से मुंह फेर लेना ठीक है ? क्या एक ही परिवार में रहते हुए बच्चों में दुभांत करना गलत नहीं ?हालात बदलते ही अपनों की आँखें कैसे बदलती हैं , शारदा ने यह अब जाना .
शारदा उस अपराध की सजा भुगत रही है जो उसने किया नहीं . शारदा की उम्र बढ़ रही है . शारदा के बच्चे पढ़ बढ़ रहे हैं . अब उसने जानी पढाई की कीमत . वह जान गई कि मंजिल चाहे कोई भी हो , रास्ता चाहे कितना भी कठिन हो , निकलता शिक्षा के बीच से ही है . इसलिए शारदा अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर पढ़ा लिखाकर अपने पांवों पर खड़े करना चाहती है . वह होली , दिवाली , रक्षा बंधन पर मिला पैसा इक्कठा कर रही है . पेट काटकर बच्चों को पढ़ा रही है . जिस से बच्चे कठिन समय का मुकाबला कर सकें .छोटे छोटे सपने देखें और पूरा कर सकें . कल्पना के पंखों से उडान भर सकें जिसका कि उन्हें अधिकार है .
डॉ. पदमजा शर्मा - कृतियाँ : - इस दुनिया के अगल बगल( शब्द चित्र ) ,इस जीवन के लिए (कविता संग्रह ) ,रमता जोगी बहता पानी ( शब्द चित्र ) , नासिर के तीन सपने ( शब्द चित्र ) , आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यासों का सांस्कृतिक अध्ययन (शोध) , यशस्वी पत्रकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा (आलोचना ) , दादा के पत्र पोते के नाम (संपादन), मेरी लड़ाई लंबी है (विविध ), जीवन के कितने पाठ ( संपादन )
Saturday, 14 November 2009
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बेहतरीन , समाज के सत्य को सामने रखा है आपने. ऐड्स और सामाजिक सोच की उत्कृष्ट प्रस्तुति है यह.
ReplyDeleteaapka ye lekh kafi kabile taarif hai ,jahan insaan tootkar bhi na bikhare ,wahi sangharsh rang laati hai ,aesi himmat naari ke aanchal me samai hoti hai tabi to itni sahanshakti hoti hai isme aur ek maa apne se jyada auro ke liye sochti hai tabhi har muskil paar kar jaati hai ,apne dukh ke liye kahan shikayat karti hai ,kal main apne param mitr ke ghar gayi to baton -baton me naari ki hi charcha hui aur ek naye vichardhara se judi tab sochi aurat ka janam apne liye hua hi kab tha ?
ReplyDeletemujhe khushi hui aapse milkar aur aapka offer bhi man ko chhoo gaya magar aapse yaade kaise batu isi soch me hoon ,
आप वाकई बहुत अच्छा काम कर रहीं हैं. एड्स पीड़ितों से मिलने से ही लोग कतराते हैं. पर आप तो उनके साथ बैठ उनका दर्द बाँट रही हैं. इससे अच्छा और क्या हो सकता है.
ReplyDeleteअगर किसी के काम नहीं आ सकते तो कम से कम उनके दुःख दर्द तो सुन सकते हैं...किसी का कहा ये वाक्य याद आ गया...आप बहुत नेक काम कर रहीं हैं...इश्वर सदा आपके साथ रहे...
ReplyDeleteनीरज
कोशिशें सफल होती हैं, क्योंकि ईश्वर ऐसा ही चाहता है।
ReplyDeleteshukriya, Is mahatvapoorna pahloo ko samne lane ke liye.........
ReplyDeleteपदमजा जी...बेहद ख़ूबसूरती और दर्द के साथ शारदा की कहानी को दिल तक पहुंचाया है आपने,धन्यवाद ,... में खुद भी एड्स अवेयरनेस पर काम करती हूँ और आज ही एड्स पर एक कहानी लिखी है शायद ब्लॉग पर दूं ..आपका लेखन प्रभावित करता है . आभार
ReplyDeleteAdhunik Samajik pridarshy ko pradarshit karti aapki kahani bahut achhi aur sachi lagi.
ReplyDeleteHardik shubhkanayen.
बहुत प्रभावी, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
Priy Padmajjaji,
ReplyDeleteAapke behad jajbati aur dil ko chhu-jane-wale kaam ko dekh kar mujhe apna ye sher yaad aa gaya-
"Qaid ki bulbul aasma ki unchai kya jane
jisne ishq na kiya ho wo judai kya jane
mandir-masjid ke daro pe rab kya milega,
dilo mei ho nafrat-gar, wo khudai kya jane"
I feel we cannot cure these AIDS affected people but we can give our blessings to them and understnd their pain, as Padamajjaji has understood and expressed the same in her creative magical writing....keep it..up..May God Bless you...!
Sumit Tyagi
बेहद उद्देश्य परक कार्य. हमारी शुभकामनायें.
ReplyDeleteएसे कई अनुभव हुए थे.. जब एच आइ वी संक्रमित व्यक्तियों के साथ काम करने का मौका मिला था.. जरुरत है उनकी बात को मानविय दृष्टीकोन से देखने कि..
ReplyDeleteशुभकामनाऐं..
लीक से हटकर लिखे गए इस मार्मिक लेख पर आपको शुभकामनायें ! आप कष्ट देखने के लिए समय निकालती हैं , आश्चर्य है आज के समय में ...
ReplyDeleteसादर !
बहुत भावः पूर्ण लेख है, आपकी संवेदनशीलता सीप के मोती की तरह उज्वल और ओस की बूंदों की तरह निर्मल है...
ReplyDeletebahut hee bhaavpoorn lekh
ReplyDeleteaapko padhkar achcha lagaa
अब उसने जानी पढाई की कीमत . वह जान गई कि मंजिल चाहे कोई भी हो , रास्ता चाहे कितना भी कठिन हो , निकलता शिक्षा के बीच से ही है .
ReplyDeletebaat dukh ke raston gujarti aapko dukhi kerti hai magar dukh ke pahad se kisi andheri khai mein aapko nahi dhakelti sahaj rasta bana ker ek achi dhal deker es tarah aapko dukh ke pahad se neeche utarti hai ki aap jaan nahi paate ki dukh ke pahad chadhe bhi the kabhi aap.....wah padma aap ka lekhan sahaj v dhanatamak urja pradan kerne wala hai ...
अब उसने जानी पढाई की कीमत . वह जान गई कि मंजिल चाहे कोई भी हो , रास्ता चाहे कितना भी कठिन हो , निकलता शिक्षा के बीच से ही है .
गहराई में बसी कसक के रूप में.... लेकिन जो हो चूका उससे क्या अब तो उनकी हिम्मत को सलाम है....
ReplyDelete--