जोधपुर थडी

डॉ. पदमजा शर्मा - कृतियाँ : - इस दुनिया के अगल बगल( शब्द चित्र ) ,इस जीवन के लिए (कविता संग्रह ) ,रमता जोगी बहता पानी ( शब्द चित्र ) , नासिर के तीन सपने ( शब्द चित्र ) , आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यासों का सांस्कृतिक अध्ययन (शोध) , यशस्वी पत्रकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा (आलोचना ) , दादा के पत्र पोते के नाम (संपादन), मेरी लड़ाई लंबी है (विविध ), जीवन के कितने पाठ ( संपादन )

Saturday 14 November 2009

शब्द चित्र

मित्रों ,

'जोधपुर थडी' में आपका स्वागत है .
यहाँ  आपसे सच- सच बात करुँगी .बिना किसी घुमाव फिराव के . बिना किसी लाग लपेट के . बिना किसी कल्पना लोक में उतरे .कुछ एड्स पीड़ित औरतों से मिलने , बात करने का अवसर मिला . उनकी बीमारी के बारे में बातचीत की . शारीरिक , मानसिक पीडा पर बात की .पारिवारिक ,सामाजिक उपेक्षा पर वे रोते रोते बोलीं .वो क्या बोलीं उनके आंसू अधिक बोले . उनके दर्द को पढने की कोशिश की .मैंने उनके नाम और जगहों के नाम बदल दिए हैं . इस से कहानी पर, आप पर, मुझ पर फर्क भी क्या पड़ता है ? ये दर्द की पोटलियाँ हैं . इन्हें धीरे धीरे सँभालते हुए खोलना .ये बिखर ना जाएँ .


                                    वह टूटकर जुड़ती रही
 
'इनके पापा नहीं रहे . कौन कन्धों पर बैठाकर दुनिया का मेला दिखायेगा ? मुझे ही चलना है इनकी अंगुली थाम कर . जब तक बदन में ताकत है . तब तक रास्ता दिखाती रहूंगी '. शारदा के इन शब्दों में ममता , विवशता ,दृढ निश्चय और दर्द करवटें ले रहा था . शारदा एचआईवी पोजिटिव है .उसके पति की मौत इसी बीमारी से हुई .

पति गुजरे तो लोगों नें सलाह दी कि तुम भी टेस्टिंग करवा लो . डरते डरते कराई .होनी को कौन टाल सकता है . वह भी उसी राह में खड़ी मिली जिस राह से उसका पति गुजरा था .शारदा कई दिन सुन्न रही .

शारदा का पति काम के सिलसिले में टूर पर ज्यादा रहता था .यह सिलसिला १५ वर्षों तक चलता रहा . एक दिन पता चला कि उसे टायफायड हो गया है . उस दौरान पॉँच इंजेक्शन दिए . बस वे ही बने उसकी मौत का कारण . पति पर थोडा सा संशय भी शारदा को मान्य नहीं . 'नहीं नहीं ,वे अच्छे चाल चलन वाले थे . एक बार टूर से लौटे . बोले सिर दर्द हो रहा है . फिर तो कभी ना थमनेवाला सिलसिला चल पड़ा बीमारियों का . '

शरीर से कमजोर होते चले गए . छाती में पानी भर गया . टी बी हो गई . एक बीमारी ठीक हो तो दूसरी चढाई कर दे . तन का किला ढहता चला गया .एड्स के खूनी पंजों ने उसकी जान ले ली . पति का जाना शारदा के लिए उसकी वह जमीन चले जाने जैसा हुआ जिस पर वह मजबूती से खड़ी थी .

पैसे की कमी ., ससुराल वालों की उपेक्षा , एक बच्चे और खुद का एचआईवी पोजिटिव होना, ये सब कारण उसे तोड़ने के लिए काफी थे . पर वह टूट टूट कर भी जुड़ती रही . उसे जीवित और साबुत रहना था . रहना है . अपने बच्चों के लिए .


मैंने शारदा से एक टेढा प्रश्न कर लिया .-कभी दूसरी शादी का ख्याल आया ?

जवाब था -एक तो उम्र का अधबीच . दूसरा ,मेरे लिए यह सब करेगा कौन ?तीसरा, जिनको पता नहीं उन्हें भी पता चल जायेगा .रही सही इज्जत चली जायेगी . चौथा, किसी की जिन्दगी क्यों बर्बाद करूँ .

इधर घरवाले कहते हैं - अपना कमाओ , खाओ . कब तक भरते रहेंगे तीन तीन पेट ? गलत भी क्या है ? शारदा कहती है --बात तो उनकी ठीक ही है . पर क्या उनके साथ ऐसा नहीं हो सकता ? क्या बुरे समय में अपनों से मुंह फेर लेना ठीक है ? क्या एक ही परिवार में रहते हुए बच्चों में दुभांत करना गलत नहीं ?हालात बदलते ही अपनों की आँखें कैसे बदलती हैं , शारदा ने यह अब जाना .

शारदा उस अपराध की सजा भुगत रही है जो उसने किया नहीं . शारदा की उम्र बढ़ रही है . शारदा के बच्चे पढ़ बढ़ रहे हैं . अब उसने जानी पढाई की कीमत . वह जान गई कि मंजिल चाहे कोई भी हो , रास्ता चाहे कितना भी कठिन हो , निकलता शिक्षा के बीच से ही है . इसलिए शारदा अपने बच्चों को किसी भी कीमत पर पढ़ा लिखाकर अपने पांवों पर खड़े करना चाहती है . वह होली , दिवाली , रक्षा बंधन पर मिला पैसा इक्कठा कर रही है . पेट काटकर बच्चों को पढ़ा रही है . जिस से बच्चे कठिन समय का मुकाबला कर सकें .छोटे छोटे सपने देखें और पूरा कर सकें . कल्पना के पंखों से उडान भर सकें जिसका कि उन्हें अधिकार है .